बकरीद का महत्व-
इस दिन बकरे की कुर्बानी देने दी जाती है. आपको बता दें कि इस्लाम धर्म में मीठी ईद के बाद बकरीद सबसे प्रमुख त्योहार है.ये भारत में १२ अगस्त को है | इस त्यौहार को वैसे कई नामो से जाना जाता है जैसे की ईद-उल जुहा,ईद-उल-अजहा,बकरा ईद| वैसे ये क़ुर्बानी का पर्व होता है | ये ईद के ७० दिन बाद पड़ता है | इस्लमिक कैलेंडर चाँद पे आधारित है | जिसके अनुसार ये (बकरीद ) १२वे माह में मनाई जाती है |
वैसे ये पर्व गरीब का पर्व कहा जाता है | भारत में हिन्दू -मुस्लिम दोनों रहते है | और त्यौहार पे ये भाईचारा देखने को भी मिलता है | इस दिन मीठी सेवई की मांग बहुत रहती है |इस्लाम में गरीब का विशेष ध्यान रखा गया है | ये त्यौहार क़ुर्बानी का तो है साथ ही क़ुर्बानी के बाद गोस्त के तीन हिस्से किये जाते है | एक खुद के लिए और दो हिस्से गरीबों के लिए | जो भी जरूरतमंद है उसे ये गोस्त बाँट देते है | इसका यही सन्देश है की आप अपनी सबसे अच्छी चीज की क़ुर्बानी कर दीजिये -समाज की तरक्की के लिए -सचाई के लिए -अमन पसंद लोगो के लिए मजबूर और जरुरत मंदों के लिए गरीबों के लिए -धर्म के लिए |
बकरीद क्यों मनाई जाती है?
इस्लाम को मानाने वालों के लिए बकरीद का बहुत महत्व है | इसके अनुसार पैगंबर हजरत इब्राहिम (ख़ुलीलुल्लाह) की एक दिन खुदा ने परीक्षा लेनी चाहिए | और उन्हें अपने सबसे अजीज बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे. तब अल्लाह ने उनके नेक जज्बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया. यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है. इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया|पैगंबर हजरत इब्राहिम को खुदा का दोस्त भी कहा जाता है |
क्यों दी जाती है कुर्बानी?
पैगंबर हजरत इब्राहिम को लगा की अपने की क़ुर्बानी देते वक़्त कही उनकी भावनाये उनके लिए बाधक न बने | इसलिए उन्होंने क़ुर्बानी देते समय अपने आँखों पे पट्टी बांध ली थी | क़ुर्बानी देने के बाद जब उन्होंने अपनी आँखों से पट्टी हटाई तो वो आश्चर्य हो गए की उनका बेटा हजरत स्माइल उनके सामने जिन्दा खड़ा है | और बेदी पे कटा हुआ दुम्बा( भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा था |और तभी से क़ुर्बानी देने की प्रथा है जो चलती आ रही है |
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