बीजू पटनायक एक प्रसिद्ध राजनेता –
बिजयानंद पटनायक को बीजू पटनायक के नाम से जाना जाता है। एक राजनेता के अलावा वह एक एयरनोटिकल इंजीनियर, नेविगेटर, उद्योगपति, स्वतंत्रता सेनानी व पायलट थे। इन सबसे ऊपर उन्हें एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व के तौर पर जाना जाता है। नेपोलियन उनके प्रेरणा थे और बीजू ने उन्हीं के पदचिन्हों का अनुसरण किया।बीजू पटनायक लोगों को प्रोत्साहित करने और विश्वास जीतने में दक्ष थे।वह लोगों के साथ प्रभावशाली ढंग से बात करते थे और अपने विचार जनता तक सही ढंग से पहुंचाने में समर्थ थे। अपनी दृढ़ इच्छा और त्याग के चलते वह एक प्रसिद्ध राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता बने।
तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज से क्यों लपेटा गया बीजू पटनायक को –
भारत के एकमात्र ऐसे व्यक्ति बीजू पटनायक है जिन के निधन पर उनके पार्थिव शरीर को तीन देशों के राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा गया था।भारत,रूस और इंडोनेशिया ये तीन देश है ।जब द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ संकट में घिर गया था तब उन्होंने लड़ाकू विमान डकोटा उड़ा कर हिटलर की सेनाओं पर काफी बमबारी की थी जिससे हिटलर पीछे हटने को मजबूर हो गया था।उनकी इस बहादुरी पर उन्हें सोवियत संघ का सर्वोच्च पुरस्कार भी दिया गया था और उन्हें सोवियत संघ ने अपनी नागरिकता प्रदान की थी।
इंडोनेशिया ने अपने देश की दी नागरिकता –
इंडोनेशिया कभी डच यानी हालैंड का उपनिवेश था और डच ने इंडोनेशिया के काफी बड़े इलाके पर कब्जा किया था और डच सैनिकों ने इंडोनेशिया के आसपास के सारे समुद्र को टच कंट्रोल करके रखा था और वह किसी भी इंडोनेशियन नागरिक को बाहर नहीं जाने देते थे।उस वक्त इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सजाहरीर को एक कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए भारत आना था लेकिन डच ने इसकी इजाजत नहीं दी थी।इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो ने भारत से मदद मांगी और इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने बीजू पटनायक से मदद मांगी।बीजू पटनायक और उनकी पत्नी ने अपनी जान की परवाह किए बगैर एक डकोटा प्लेन लेकर डच के कंट्रोल एरिया के ऊपर से उड़ान भरते हुए वे उनकी धरती पर उतरे और बेहद बहादुरी का परिचय देकर इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री को सिंगापुर होते हुए सुरक्षित भारत ले आए।
इससे इंडोनेशिया के लोगों में एक असीम ऊर्जा का संचार हुआ और उन्होंने डच सैनिकों पर धावा बोला और इंडोनेशिया एक पूर्ण आजाद देश बना।इस बहादुरी के काम के लिए पटनायक को मानद रूप से इंडोनेशिया की नागरिकता दी गई और उन्हें इंडोनेशिया के सर्वोच्च सम्मान ‘भूमि पुत्र’ से नवाज़ा गया था।जिस दिन सुकर्णो की बेटी पैदा हुई उस दिन तेज़ बारिश हो रही थी और बादल गरज रहे थे, यही वजह थी कि बीजू पटनायक ने नाम सुझाया -मेघवती |जो की बाद सुकर्णो की बेटी का नाम हुआ | बीजू पटनायक के निधन के बाद इंडोनेशिया में सात दिनों का राजकीय शोक मनाया गया था और रूस में एक दिन के लिए राजकीय शोक मनाया गया था तथा सारे झंडे झुका दिए गए थे।
बीजू पटनायक का प्रारम्भिक जीवन –
बीजू पटनायक का जन्म उड़ीसा के कटक में 5 मार्च 1916 को हुआ। उनके पिता का नाम स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण पटनायक और माता का नाम आशालता देवी था। उनके पिता उडि़या आंदोलन के अग्रणी सदस्य और जाने-माने राष्ट्रवादी थे। उनके दो भाई और एक बहन थी। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा मिशन प्राइमरी स्कूल और मिशन क्राइस्ट कॉलेजिएट कटक से पूरी की। 1927 में वह रेवेनशॉ विद्यालय चले गए, जहां एक समय पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी अध्ययन किया था। वह अपने कॉलेज के दिनों में प्रतिभावान खिलाड़ी थे और यूनिवर्सिटी की फुटबॉल, हॉकी और एथलेटिक्स टीम का नेतृत्व करते थे।
वह तीन साल तक लगातार स्पोर्ट्स चैंपियन रहे। दिल्ली फ्लाइंग क्लब और एयरनोटिक ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में पायलट का प्रशिक्षण लेने के लिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। बचपन से ही उनकी रुचि हवाई जहाज उड़ाने में थी। इस प्रकार वह एक प्रख्यात पायलट और नेविगेटर बन गए। बीजू पटनायक ने इंडियन नेशनल एयरवेज ज्वाइन कर ली और एक पायलट बन गए। 1940-42 के दौरान जब स्वतंत्रता का संघर्ष जारी था, वह एयर ट्रांसपोर्ट कमांड के प्रमुख थे।
बीजू पटनायक का विज्ञानं में योगदान और जीवन के अंतिम क्षण –
दुनियाभर के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने 1952 में कलिंग फाउंडेशन ट्रस्ट की स्थापना की और कलिंग पुरस्कार की पहल की, जिसे यूनेस्को द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्यों के लिए प्रदान किया जाता है। इसके अलावा उन्होंने पारादीप बंदरगाह के निर्माण में बड़ा योगदान दिया।बीजू पटनायक का निधन 17 अप्रैल 1997 को ह्रदय और सांस की बीमारी के चलते हो गया।उन्हें आधुनिक ओडिशा का शिल्पकार भी माना जाता है|
एक नेता ऐसा भी था जिसको कई वर्षों तक याद किया जाएगा |इस समय नवीन पटनायक ओडिशा के मुख्यमंत्री है |वो बीजू पटनायक के ही पुत्र है |वर्ष 1997 में नवीन पटनायक ने उनके पिता का निधन होने के बाद राजनीति में कदम रखा और एक वर्ष बाद ही अपने पिता बीजू पटनायक के नाम पर बीजू जनता दल की स्थापना की। नवीन पटनायक का नाम ओडिशा के इतिहास में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बनने का कीर्तिमान है| अब देखा जा सकता है वो अपने पिता के विरासत को कितना आगे ले जाते है |
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